प्राचीन काल से ही मारंग बुरु संथालों का है


Marang Buru
 (मारांग बुरु), जिसका अर्थ है “महान पहाड़” या “महान देवता,” संथाल समुदाय के लिए एक पवित्र और आध्यात्मिक महत्व रखता है। यह संथाल लोगों के प्रमुख देवताओं में से एक है और उनकी पारंपरिक आस्था का केंद्र है। संथाल समुदाय का मानना है कि मारांग बुरु उनकी रक्षा करता है और उनके जीवन और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखता है।

संथाल और मारांग बुरु

  • मारांग बुरु संथाल लोगों के लिए एक पवित्र देवता है, जो उनकी पारंपरिक आस्था और संस्कृति का हिस्सा है।
  • संथाल समुदाय मारांग बुरु को प्रकृति और पहाड़ों का प्रतीक मानता है और उनकी पूजा करता है।
  • यह संथाल लोगों की पहचान और आध्यात्मिकता से गहराई से जुड़ा हुआ है।

जैन धर्म और मारांग बुरु

  • जैन धर्म में मारांग बुरु का कोई स्थान नहीं है। जैन धर्म एक अलग धार्मिक परंपरा है, जो अहिंसा, तपस्या और कर्म के सिद्धांतों पर आधारित है।
  • जैन धर्म में प्रकृति और पहाड़ों की पूजा का कोई विशेष महत्व नहीं है, जैसा कि संथाल समुदाय में है।

निष्कर्ष

मारांग बुरु का अधिकार और महत्व संथाल समुदाय से जुड़ा हुआ है। यह उनकी पारंपरिक आस्था, संस्कृति और आध्यात्मिकता का हिस्सा है। जैन धर्म का इससे कोई संबंध नहीं है। इसलिए, मारांग बुरु पर संथाल समुदाय का अधिकार है, न कि जैन समुदाय का।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *